Chhath Puja 2025: लोकआस्था का महापर्व छठ, भारतीय संस्कृति में प्रकृति पूजा का एक अनूठा उदाहरण है, जो चार दिनों तक पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और उनकी बहन छठी मइया (प्रकृति देवी) को समर्पित है, जिनके प्रति आभार व्यक्त कर व्रती संतान, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ पूजा का हर दिन और हर सामग्री, चाहे वह पवित्र स्नान हो, ठेकुआ का प्रसाद हो या फिर बाँस का ‘सूप’, अपने आप में गहन धार्मिक महत्व रखता है। आज, पर्व के दूसरे दिन को खरना के रूप में मनाया जा रहा है, जो 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत का प्रतीक है, लेकिन इस पूरे अनुष्ठान में सूप की भूमिका किसी भी अन्य सामग्री से कम नहीं है।
Chhath Puja खरना: आत्मशुद्धि और निर्जला व्रत का आरंभ

Chhath Puja का दूसरा दिन खरना (आज, 26 अक्टूबर 2025, रविवार) कहलाता है। ‘नहाय-खाय’ से शुरू हुई शुद्धि की प्रक्रिया इस दिन आत्मिक स्तर पर पूरी होती है। खरना के दिन व्रती पूरे दिन उपवास (निर्जला व्रत) रखते हैं और शाम को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से गुड़ की खीर (रसिया) और घी लगी रोटी तैयार करते हैं। सूर्य देव और छठी मइया को इस प्रसाद का भोग लगाने के बाद, व्रती स्वयं इसे ग्रहण कर 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत की शुरुआत करते हैं। यह प्रसाद केवल शुद्ध अन्न का नहीं, बल्कि आत्मसंयम और आत्मशुद्धि का प्रतीक है, जो व्रती को पर्व की कठिन तपस्या के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करता है।
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Chhath Puja में सूप का विशेष महत्व
Chhath Puja में पूजन सामग्री को सजाने और अर्घ्य देने के लिए सूप का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है। यह केवल एक बर्तन नहीं, बल्कि श्रद्धा, पवित्रता और प्रकृति के साथ जुड़ाव का सशक्त प्रतीक है।
Chhath Puja में प्रकृति और शुद्धता का प्रतीक है बाँस का सूप
पारंपरिक रूप से सूप को बाँस या बेंत से बनाया जाता है। बाँस को भारतीय संस्कृति में अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। यह तेजी से बढ़ने वाला और लचीला पौधा है, जो प्रकृति की तेजस्विता, सहनशीलता और स्थायित्व का संदेश देता है। चूंकि छठ महापर्व प्रकृति और सूर्य की पूजा का पर्व है, इसलिए बांस से बना सूप ही अर्घ्य और प्रसाद के लिए इस्तेमाल होता है, जो पूजा की सात्विकता और शुद्धता को बनाए रखता है। ऐसी मान्यता है कि बाँस का सूप घर में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाता है।
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Chhath Puja में अर्घ्य एवं प्रसाद का पवित्र वाहक है सूप
छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण क्षण, डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देना है। इस दौरान, व्रती सूप में ही सभी पवित्र सामग्रियाँ सजाती हैं:
- ठेकुआ और अन्य पकवान: छठ का विशेष प्रसाद।
- मौसमी फल: जैसे केला, नारियल, ईख (गन्ना)।
- दीप: ज्ञान और ऊर्जा के प्रतीक।
- अनाज: समृद्धि और प्राकृतिक चक्र का प्रतीक।
सूप में अर्घ्य सामग्री रखकर सूर्यदेव को अर्पित करने से व्रती यह संदेश देती है कि उनका जीवन प्रकृति की कृपा पर निर्भर है। यह सूप सूर्यदेव के प्रति भक्ति और आभार प्रकट करने का माध्यम बन जाता है।
सूप के बिना अधूरी है Chhath Puja
धार्मिक मान्यता है कि सूप में अर्घ्य अर्पित करने से सूर्यदेव और छठी मइया तुरंत प्रसन्न होते हैं। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद यही सूप पूजा के अंत में प्रसाद वितरण के लिए भी उपयोग होता है। व्रती इसी पवित्र सूप में प्रसाद रखकर छठी मइया से अपने बच्चों के स्वास्थ्य, लंबी आयु, संतान-सुख और परिवार की समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।Chhath Puja का यह सूप परिवार के लिए दैवीय आशीर्वाद को धारण करने वाला एक पात्र बन जाता है, जिसके बिना छठ की पूजा अधूरी मानी जाती है।
Chhath Puja में कौन सा सूप करें इस्तेमाल! परंपरा बनाम आधुनिकता: बांस या पीतल?
हालांकि पारंपरिक रूप से Chhath Puja में बाँस का सूप ही प्रयोग किया जाता है, लेकिन आजकल कुछ व्रती पीतल के सूप का भी इस्तेमाल करने लगे हैं। शास्त्रों में पीतल को सूर्य देव का धातु माना गया है और इसका पीला रंग सूर्य का प्रतीक है। बाँस का सूप जहाँ परंपरा और प्रकृति का प्रतीक है, वहीं पीतल का सूप वैभव और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। लेकिन, परंपरागत रीति-रिवाजों का पालन करने के लिए बाँस का सूप ही सबसे अधिक शुभ और पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह पर्व को प्रकृति से जोड़ता है।
छठ पर्व और सूप का यह संबंध केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में शुद्धता, त्याग, प्रकृति प्रेम और अटूट आस्था का प्रमाण है। सूप, इस महापर्व का मूक, किन्तु सबसे महत्वपूर्ण अंग है।



