हिंदू धर्म में हर पूजा-पाठ के कुछ विशेष नियम होते हैं, और Ganesh Ji की पूजा में तुलसी का वर्जित होना भी इन्हीं में से एक है। हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है गणेश चतुर्थी । देश भर में यह त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। लोग अपने घरों में गणपति बप्पा को विराजमान करते हैं उनकी सेवा करते हैं। लेकिन बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि गणपति बप्पा को तुलसी अर्पित नहीं की जाती। इसे शास्त्रों में वर्जित माना गया है। आइए जानते हैं आखिर ऐसा क्यों है?
गणेश चतुर्थी: भक्ति और उत्सव का महापर्व
गणेश चतुर्थी हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है, यह भगवान Ganesh Ji के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान, भक्त अपने घरों में गणपति बप्पा की सुंदर प्रतिमा स्थापित करते हैं, जिसे गणेश स्थापना भी कहते हैं। 10 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में लोग उनकी दिन-रात सेवा करते हैं, उनकी प्रिय वस्तुएं जैसे मोदक और दूर्वा अर्पित करते हैं।
इस पर्व का मुख्य उद्देश्य भगवान गणेश से सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करना है। Ganesh Ji को विघ्नहर्ता माना जाता है, यानी वे सभी बाधाओं को दूर करने वाले हैं। यही वजह है कि किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा की जाती है।
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Ganesh Ji की पूजा में तुलसी क्यों वर्जित है?
गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जो बताती है कि कैसे तुलसी और गणेश जी के बीच एक श्राप का आदान-प्रदान हुआ था। यह कहानी न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि हमें यह भी सिखाती है कि हर वस्तु का अपना एक विशेष स्थान होता है। आइए जानते हैं उस कथा के बारे में..
गणेश और तुलसी की कथा:
यह कहानी उस समय की है जब भगवान Ganesh Ji युवावस्था में थे और अपने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहे थे। एक दिन वे गंगा नदी के किनारे ध्यान कर रहे थे, तभी वहां से तुलसी देवी गुज़रीं, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। गणेश जी के सौम्य रूप और तपस्या से वे इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने गणेश जी के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया।
लेकिन, Ganesh Ji ने अपने ब्रह्मचर्य व्रत का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने विनम्रता से तुलसी से कहा कि वे विवाह के बंधन में नहीं बंध सकते। गणेश जी के इस उत्तर से तुलसी को बहुत दुःख हुआ और क्रोध में आकर उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया कि उनका विवाह दो बार होगा।
इस पर, Ganesh Ji ने भी तुलसी को जवाब में श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। इस श्राप को सुनकर तुलसी बहुत भयभीत हुईं और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने तुरंत गणेश जी से क्षमा मांगी।
तुलसी की पश्चाताप भरी विनती को सुनकर गणेश जी का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने तुलसी को आशीर्वाद देते हुए कहा, “हे तुलसी! तुम्हारा विवाह शंखचूड़ नामक असुर से अवश्य होगा, लेकिन तुम भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय रहोगी और कलियुग में तुम जगत के लिए जीवन और मोक्ष प्रदान करने वाली बनोगी। तुम्हारी महिमा अपरंपार होगी, लेकिन मेरे श्राप के कारण मेरी पूजा में तुम्हारा उपयोग नहीं किया जाएगा।”
इसी घटना के बाद से यह माना जाता है कि Ganesh Ji की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता।
धार्मिक मान्यता और पूजा के नियम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, Ganesh Ji की पूजा में तुलसी अर्पित करने से वे प्रसन्न नहीं होते, बल्कि इससे पूजा का फल भी अधूरा रह जाता है। इसलिए, भक्त इस नियम का सख्ती से पालन करते हैं।
गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष वस्तुएं हैं, जिन्हें उनकी पूजा में बहुत शुभ माना जाता है:
- दूर्वा: यह गणेश जी को सबसे प्रिय है। दूर्वा की 21 गांठें बनाकर चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है।
- मोदक: गणेश जी को मोदक बहुत पसंद है, इसलिए इसे भोग में अवश्य चढ़ाया जाता है।
- लाल फूल: गणेश जी को लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल का फूल बहुत प्रिय है।
- लाल चंदन और सिंदूर: ये दोनों वस्तुएं भी उनकी पूजा में विशेष रूप से उपयोग की जाती हैं।
इन सभी वस्तुओं को अर्पित करने से गणेश जी अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
गणेश चतुर्थी का त्योहार केवल गणेश जी की पूजा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें धार्मिक नियमों और मान्यताओं के महत्व को भी समझाता है। गणेश जी की पूजा में तुलसी का वर्जित होना इसी का एक उदाहरण है। यह कथा हमें बताती है कि हर पूजा-पाठ के पीछे कोई न कोई विशेष कारण या कहानी छिपी होती है, जो हमारी आस्था को और भी गहरा बनाती है।
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