उत्तराखंड पृथक राज्य आंदोलन के दौरान हुआ मसूरी गोलीकांड उत्तराखंड के इतिहास का एक काला अध्याय है। इसी दिन अलग राज्य की मांग कर रहे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां चलाईं थीं जिसमें कई आंदोलनकारी शहीद हो गए थे।
मसूरी गोलीकांड – निहत्थे आंदोलनकारियों पर चली गोलियां
2 सितंबर, 1994, का दिन उत्तराखंड के इतिहास में एक काला अध्याय है। यह वो दिन था जब पहाड़ों की रानी मसूरी में उत्तराखंड राज्य के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने बेरहमी से गोलियां चलाईं। इस घटना को मसूरी गोलीकांड के नाम से जाना जाता है, जिसमें 6 बहादुर आंदोलनकारी शहीद हो गए और कई अन्य घायल हुए। यह गोलीकांड उत्तराखंड राज्य आंदोलन की सबसे क्रूर और दर्दनाक घटनाओं में से एक है, जिसने आंदोलन की आग को और भड़का दिया।
अचानक शुरू हो गई फायरिंग
खटीमा गोलीकांड के ठीक एक दिन बाद, उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर पूरे उत्तराखंड में गुस्सा और विरोध प्रदर्शन चरम पर था। इसी क्रम में, 2 सितंबर को मसूरी में भी आंदोलनकारी शांतिपूर्वक जुलूस निकाल रहे थे। प्रदर्शनकारियों का एकमात्र उद्देश्य उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिलाना था, ताकि क्षेत्र का विकास हो सके और स्थानीय लोगों को उनका हक मिल सके।
जुलूस जैसे ही मसूरी के झूलाघर चौक के पास पहुंचा, पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने की कोशिश की। देखते ही देखते स्थिति तनावपूर्ण हो गई और पुलिस ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। अचानक हुई इस गोलीबारी से पूरे शहर में दहशत फैल गई। प्रदर्शनकारियों में भगदड़ मच गई, लेकिन पुलिस ने गोलियां चलाना जारी रखा।
मसूरी गोलीकांड में शहीद हुए ये वीर
इस बर्बर गोलीकांड में 6 लोगों ने अपनी जान गंवाई:
- बलबीर सिंह नेगी
- धनपत सिंह
- राय सिंह बंगारी
- मदन मोहन ममगाई
- हंसा धनई
- बेलमती चौहान
ये सभी शहीद उत्तराखंड के सपने को सच करने के लिए अपनी जान कुर्बान कर गए। उनकी शहादत ने आंदोलनकारियों के हौसले को और मजबूत किया और पूरे क्षेत्र में संघर्ष की भावना को और प्रज्वलित किया।
मसूरी गोलीकांड ने दी नई दिशा
मसूरी गोलीकांड ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन को एक नई दिशा दी। इस घटना ने न केवल लोगों के मन में आक्रोश भरा, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि अलग राज्य की मांग कितनी जायज और जरूरी है। इस घटना के बाद, पूरे उत्तराखंड में आंदोलन ने और भी उग्र रूप धारण कर लिया। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए, सड़कें जाम की गईं और सरकारी दफ्तरों में तालाबंदी कर दी गई।
इस गोलीकांड ने तत्कालीन सरकार पर भारी दबाव डाला और उत्तराखंड राज्य के गठन की प्रक्रिया में तेजी आई। 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया, जो इन शहीदों के बलिदान का ही नतीजा था।
आज भी याद आते हैं शहीद, देते हैं श्रद्धांजलि
आज भी, मसूरी में हर साल 2 सितंबर को इन शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। झूलाघर चौक पर उनकी याद में एक शहीद स्मारक भी बनाया गया है, जो हमें हमेशा याद दिलाता है कि उत्तराखंड का निर्माण कितने संघर्षों और बलिदानों के बाद हुआ है। मसूरी गोलीकांड सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड के लोगों की अदम्य इच्छाशक्ति और न्याय के लिए उनके संघर्ष का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि अधिकारों के लिए खड़ा होना और बलिदान देना हमेशा सार्थक होता है।
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